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रिश्ते

Life
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जनवरी की एक सर्द सुबह थी। हल्के कोहरे के बीच मैने गाडी पार्क करने के लिये एक जगह ढुन्ढ ली थी। आज लायर के साथ मेरी मीटिंग थी और मै उतनी ही जल्दी पहोचना चाहता था जितना कि मै लेट हो चुका था। वहाँ हर कोई जल्दी मे था और कोर्ट की भीड़ को देख कर के अन्दाज़ा हुआ कि “Rate of increase of Disputes is much higher than the rate of increase of population”.मुझे एक हल्की सी हँसी आ गयी,मैने अपनी हँसी को रुमाल से छिपाते हुए चेहरा साफ़ करने का दिखावा किया।वकील साहब का कमरा आ चुका था, मैने नाक किया मगर जब कोई आवाज नहीन आयी तो मैने दरवाज़े की आड़ से अन्दर देखा। अन्दर एक 34-35 साल की लेडी बैठी हुई थी। मैने ज्यादा ध्यान नही दिया शायद कोई क्लाइंट थी,मैं भी अन्दर जा के एक कुर्सी पे बैठ गया। अचानक मेरी नज़र बाहर की ओर निहारती खिड़की पे गयी। उनपे कोहरे की वजह से पानी की बुन्दें जमा हो रही थी। बाहर का मौसम काफ़ी अच्छा था तो अनयास ही मेरा ध्यान उन खिड़कियों की ओर जा रहा था। पानी कि एक बूँद आती और वो एक दुसरी बूँद से टकरा जाती,और अब एक बड़ी बूँद बन जाती और सब एक साथ नीचे कि तरफ़ फ़िसलती चली जाती। अगर मेरी जगह कोई फिलोसफ़र बैठा होता तो शायद जिन्दगी का एक बहुत ही अच्छा उदाहरण पेश कर सकता था।
अब मै काफ़ी देर तक शान्त नहि रह सकता था क्यूंकि अपने आस पास के माहौल को देख कर मै जितनी ह्युमरस बातें सोच सकता था वो मै सोच चुका था। मेरा ध्यान उस लेडी की तरफ़ गया,वो काफ़ी देर से एक बिज़नेस पत्रिका मे आंख गड़ाये बैठी थी। फ़िर जब मैने उस लेडी की घड़ी में ही वक़्त देखा तो अन्दाज़ हुआ कि मुझे आये हुए तो काफ़ी देर हो गयी है। मैने उस लेडी से पूछा
“जी मि0 मल्होत्रा (लायर)कब तक आयेंगे?”
“अभी एक हीयरिंग पे गये है, कह के तो गये थे कि जल्दी आ जायेंगे मगर काफ़ी वक्त हो गया है।“ उन्होने कहा
इस थोड़ी सी बात चीत के बाद माहौल मे फ़िर एक चुप्पी सी आ गयी। मगर ये चुप्पी काफ़ी लम्बी नही थी,और उस लेडी ने मुझसे पुछा “क्या आप की भी अप्वाइंट्मेंट है?”
मैने कहा “हाँ,पर क्या आप की भी?”
मुझे उस लायर पे थोड़ा गुस्सा आया और मैने कहा “पैसे के लिये ये लोग एक ही टाईम पे दो दो लोगों को बुला लेते है और खुद गायब हो जाते हैं।”
उस लेडी ने महौल शान्त करने की ज़रा सी कोशिश की और बताया कि उनकी मीटिंग का वक़्त सुबह का ही था मगर मि0 मल्होत्रा को अर्जेन्ट हीयरिंग मे जाना पड़ा। तब मुझे भी आभास हुआ कि शायद इसमे मि0 मल्होत्रा की कोई गल्ती नहीं है,और मैने भी अपने गुस्से को लेकर माफ़ी मान्ग ली। इतने मे ही महौल कि चुप्पी को तोड़ते हुए एक लेदर के बूटों की कट-कट गूँज उठी। ये मि0 मल्होत्रा थे,काला कोट,व्हाईट शर्ट और व्हाईट पैंट,माथे का पसीना पोछते हुए उनका कमरे मे आगमन हुआ। चाल ढाल से तो अभी भी बहुत जल्दी मे लग रहे थे,आते ही एक छोटी सी फार्मल स्माईल के साथ उन्होने ह्म दोनो क्लाईंट को ग्रीट किया और साथ ही साथ कानून की किताबों के अपने संग्रह मे कुछ किताबें खंगालने लगे। मि0 मल्होत्रा इस शहर के चन्द सबसे अच्छे लायरों मे शुमार थे और उनके समर्पण को देख कर मैं समझ सकता था कि आखिर क्यूँ ऐसा था। मि0 मल्होत्रा को शायद वो चीज़ मिल गयी थी जो वो ढूँढ रहे थे,उन्होने उसे नोट किया अपनी कुर्सी पे बैठे और कहा-
“आप दोनो ही लोगों से माफ़ी चाहूंगा कि आप लोगों को मैने आज के दिन बुला लिया,वो दरअसल आज बहुत दिनों से चल रहे केस की हीयरिंग कि डेट थी और मुझे ज़रा भी ध्यान न रहा और शायद उस क्लाईंट के केस का आज फ़ैसला आज हो जाये,तो अभी तो आप दोनो के केसेज़ के बारे मे बातें करना थोड़ा मुश्किल है। मै अपनी इस भूल के लिये वाकई शर्मिंदा हूँ और अगर आप लोग बुरा न मानें तो हम लोग आज शाम मे यही आफिस मे मिल सकते है।”
मि0 मल्होत्रा से मेरे काफ़ी अच्छे सम्बन्ध थे तो मुझे उनकी इन बातों का ज़रा भी बुरा नही लगा और शायद उस लेडी की भी कोई जान पहचान रही होगी तभी उसने भी मि मल्होत्रा का विरोध नहीं किया और हल्की सी स्माईल से उनका अभिवादन भी किया।मि मल्होत्रा अपने लिखे हुए नोट को फ़िर से पढ़ते हुए लौट गये।

मै वापस लौटना चाह रहा था और मौसम का मिजाज़ जानने के लिये मैने खिड़की खोल दी।कमरे की खामोशी में अब हवाओं के टकराने का शोर गूँज रहा था। कोहरे की चादर और बढ़ती ही जा रही थी,मैंने उस खुली खिड़की से एक लम्बी साँस ली कि तभी पीछे से अवाज़ आयी
“माफ़ किजियेगा मगर मुझसे ज्यादे ठंद बर्दाश्त नही होती” उस लेडी ने कहा।
“आई एम सारी मुझे पत नही था” मैने भी ये जवाब देते हुए खिड़की बन्द कर दी,और बातो के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए मैने उस लेडी से उनका नाम पूछा।
“हाय आई एम क्रिति ! मिसेज़ क्रिति अग्रवाल । एंड आपका??”
“तरुन राय”
अपना नाम बताने के बाद मै अपने साथ लाये हुए डाक्युमेंट सम्भालने लगा और बाहर निकलने की तैयारी करने लगा । हम दोनो साथ ही साथ बाहर आने लगे।
“आपका घर किस तरफ़ पड़ता है मिसेज़ क्रिति?”
“जी वो शहर से थोड़ा बाहर मेरे हसबैंड की एक फैक्ट्री है वहीं हमारा घर भी बना हुआ है ।”
“तो अभी आप घर कैसे जायेंगी क्यूँकि आपको तो पहोचने मे ही काफ़ी वक़्त लग जायेगा और तब आप शाम तक लौंटेगी कैसे?”
“हाँ यही तो मै भी सोच रही हूँ कि शाम तक यहीं कोर्ट मे ही रुक जाउँ आपका घर किस तरफ़ है मि0 तरुन?”
“मेरा तो कुछ ही फ़ासले पर है?” मैने बताया ।
“चलिये तब आप अपने घर जा सकते है ।”
मैने कहा “नही शायद नहीं । दरअसल मेरी वाईफ़ घर पे नही है,घर लाक है और मै भी आज मि मल्होत्रा से मिलकर जयपुर निकलने वाला था। अब तो शाम को मिलने के बाद ही निकल पाउंगा।”
“अच्छी अप्वाईंट्मेंट दी है मल्होत्रा जी ने हम लोगों को” इतना कहते हुए मिसेज़ क्रिति ने हल्का सा स्माईल किया।”
अब हम दोनो साथ ही साथ कोर्ट मे टहल रहे थे।वहां के माहौल मे हम कुछ अच्छा वक़्त बीतने की उम्मीद नहीं कर सकते थे क्यूँकि चारों तरफ़ अपराधी,पुलिस,वकील यही सब नजर आ रहा था। मैं चलता ही जा रहा था कि तभी एक अवाज़ आयी
मि तरुन !
मैने पिछे मुड़ कर देखा तो ये मिसेज़ क्रिति थी।
“चलिये मि मल्होत्रा के केबिन मे ही बैठते है।” उन्होने कहा। मुझे भी ये सही लगा।
अब हम लोग केबिन मे ही बैठ गये। मैने टाईमपास के लिये ही एक बिज़नेस पत्रिका उठा ली और उस्मे पब्लिश कुछ लेख वाकई काफ़ी अच्छे थे।मिसेज़ अग्रवाल भी कोई बिज़नेस पत्रिका ही पध रही थी। अचानक ही उन्होने मुझे उस पत्रिका मे प्ब्लिश एक लेख दिखाया जो कि सेंसेक्स के उतार चढ़ाव पे था।मैं उसके लेखक के विचारों से काफ़ी हद तक सह्मत था क्यूँकि मै एक आम जनता की तरह उस लेख को देख रहा था जिसे उस विषय का सतही ग़्यान ही था,मगर मिसेज़ अग्रवाल उस लेख से कतई सहमत नहीं नज़र आ रही थी।विषय के ग्यान को देख कर मुझे उन्हे रोकना पड़ा-
“आपकी इस विषय पे पकड़ काफ़ी अच्छी है। आर यू अ बिज़नेस वूमन?”
“नहीं पहले मैं एक कम्पनी मे एच आर डिपार्ट्मेंट मे थी।फ़िर शादी के बाद से मै घर सम्भाल रही हूँ।”
“आप यहाँ कोर्ट मे किस काम से?” मुझसे रहा नहीं गया और मैने पुछ ही लिया।
अचानक उनके चेहरे पे मायूसी सी छा गयी,उदासी की एक लकीर आँखों से उनका काजल लिये गालों तक आ गयी।मुझे थोड़ा सा बुरा लगा क्यूँकि हमारी आज एक पहली मुलाकात थी और शायद ऐसा निजि सवाल नहीं पूछ्ना चाहिये था।मैने अपना सर निचे झुका लिया और दुसरी तरफ़ देखने लगा कि तभी अवाज आयी-
“मैने डाईवोर्स की पेटिशन फाईल की थी।”
ऐक पल को मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी,बाहर की ठंड ऐसा लगता था मानो मुझ पे हावी हो रही है और मुझे कंपकपी सी उठने लगी,मै बढ़ा और खिड़की से बाहर की ओर देखने लगा।
“माफ़ किजियेगा मिसेज़ अग्रवाल मुझे शायद इतना निजी सवाल नही”

“नही इसमे आपकी कोई गलती नही है। अब धीरे-धीरे सब ही पुछेंगे ,मुझे ही इसकी आदत डालनी पड़ेगी। कोशिश करती हुँ कि ईमोशन पे कन्ट्रोल कर लूँ मगर अभी आदत नही पड़ी है क्या करूँ।”
इतनी सी बात के बाद मैने अपने पाकेट से एक सिगरेट निकाली और खिड़की से बाहर देखकर उन्हे सुल्गाने लगा।सिर्फ़ दो या तीन कश के बाद मैने वो फ़ेंक दी।मै एक कुर्सी पे बैठ गया,मै बड़ा ही असहज महसूस कर रहा था। बार –नार अपनी हथेलियाँ रगड़ता और लम्बी-लम्बी सांसे ले रहा था या शायद आह भर रहा था।मिसेज अग्रवाल काफ़ी देर से ये सब नोटिस कर रहीं थी और मुझे भी लग रहा था कि उन्हे ये सब अजीब लग रहा होगा,कि तभी उन्होने मुझसे ये पूछ ही लिया –
“मि0 तरुन आप कुछ असहज से लग रहे है।”
मै इस वक़्त किसी और ही सोच मे था और मिसेज अग्रवाल की अवाज़ ने मुझे वहां से बाहर निकाल दिया।
“वो दरअसल मेरा भी डाईवोर्स का ही केस है।”
इतने छोटे से जवाब के बाद हम दोनो ही एक गहरी खामोशी मे चले गये।मै भी सोच रहा था कि शायद दुनिया मे काफ़ी लोग खुश नही है,और चाहे पुराने रीति रिवाजों का हवाला देकर या पारिवारिक मर्यादाओं का ध्यान रख कर बहुत से लोग रिश्तों के भार को पुरी जिन्दगी ढोते है अगर कोई हम जैसा उन्हे तोड़ने की कोशिश करता है तो उसे पूरी दुनिया के सामने रोना ही पड़ता है और उन्हे समझने वाले लोग दुनिया मे कम ही होते है।
“माफ़ी चहता हूँ मिसेज अग्रवाल मगर आपने ऐसा डिसिज़न कैसे लिया?मै आपके लिये एक अन्जान की तरह हूँ और अगर आप चाहे तो मेरे इन सवालों क जवाब दे सकती है और अगर ना देना चाहे तो ना ही मैं बुरा मानूंगा और ना ही कुछ और पुछूँगा।“
“नहीं मि तरुन इसमे बुरा मानने जैसी कोई बात है ही नही, और जहा तक डाईवोर्स के डिसिजन की बात है तो हमारी शादी मेरी पसन्द से हुई थी शादी से पहले सब ठीक था मै और वो दोनो ही जाब किया करते थे फ़िर शादी के बाद सब कुछ वैसा नही रहा। मैने नौकरी छोड़ दी क्यूंकि मेरे हसबैँड को लगता था कि मै जाब करूंगी तो दूसरे सोचेंगे कि वो अकेले अपनी सैलरी से घर नही सम्भाल सकते इसलिये मुझे भी नौकरी करवाते है।पता नही उनका मेल ईगो इतना ज्यादा क्युँ था।मैने भी खुशी खुशी जोब छोड़ दी, मगर परिस्थितियां बिगड़ती ही जा रही थी। हमारे पास पैसा था मगर मेरे हस्बैडं अपने बिजनेस को लेकर टेंशन मे रहते थे। मै उनकी कोई फ़िकर करती या कोई मदद करना चाहती तो उन्हे बुरा लगता,उनकी सोच थी कि मै ये सब करके अपनी सुपीरियारिटी दिखा रही,बट आई वाज़ डूईंग माई बिट,बीईंग अ वाईफ़ ईट्स एन आब्लिगेशन ।”
इतना कह कर मिसेज़ क्रिति ने एक गहरी सांस ली और आँसूओं को रोकने की एक नकाम सी कोशिश करते हुए उन्होने आगे की कहानी कही-
“उनका गुस्से पे कन्ट्रोल भी कम होता गया, अब बाते सिर्फ़ बातों तक ही सीमित नही थी और उनमे फ़िज़िकल वाईलेंस भी शामिल हो चुका था एंड स थिंग्स हैव बीकम मोर वर्सेन्, तो मैने भी रिश्तों को ढोने से ज्यादा उन्हे तोड़ना ही सही समझा।आखिर सबकी ख्वाहिशे होती है एक हद तक उनमे समझौता मै ही क्या हर कोई कर सकता है,शायद यही हमारी भारतीयता है मगर कैरेक्टर असैसिनेशन को सहना काफ़ी मुश्किल होता है।
और एक बात आपसे भी जरुर कहना चाहूँगी-
काल मी क्रिति नाऊ नाट मिसेज़ अग्रवाल, आई एम स्ट्रगलिंग टू मेक माई ओन आईडेन्टिटी अगेन एंद दिस इज़ माई फर्स्ट स्टेप्।”
शायद मैं उनकी बातों को समझ चुका था और दुनिया मे काफ़ी लोग इस तरह की दकियानूसी विचारों और मान्यताओं मे जीने को मजबूर थे।इन्हे तोड़ना उनके लिये बहुत मुश्किल होता है और एक औरत के संदर्भ मे ये बाते और भी कठिन हो जाती है। और शायद क्रिति उन्हे तोड़ने की कोशिश कर अपने अंदर एक मजबूती लाने की कोशिश कर रही थी।

“मि तरुन आपके ऐसा फ़ैसला लेने की कोई खास वजह?”
“मेरी वजह थोड़ी सी अलग है।मेरी शादी के बाद मेरी वाईफ़ बड़ी ही शिद्द्दत के साथ अपनी भारतीयता निभाती थी फ़िर भी कुछ था जो हम लोग के बीच मे दिवार की तरह से था।मै भी चाहता था कि कोई मुझ पर अपना अधिकार दिखाये,मुझे अगर आफिस से लेट हो तो उसके काल्स और मैसेजेस मेरे घर आने तक रुके नही। ऐसा कोई जो सिर्फ़ मेरा ध्यान न दे बल्कि मेरा ख्याल भी रखे,पर हमारे बीच मे सब कुछ एक कर्तव्य सा होता था और उसमे कहीँ अपनापन शामिल नहीँ था। शायद यही सब
सोच के मैने उससे एक दिन पूछ ही लिया।तब उसने बताया कि वो किसी और से शादी करना चाहती थी मगर ऐसा नही हो सका।
इतना कहके मै चुप हो गया।
“मि तरुन क्या आपका ऐसा नहीं लगता कि आपने डाईवोर्स का फ़ैसला थोड़ा जल्दी कर लिया उसे मौका नही दिया क्यूँकि वो कोशिश तो कर रही थी,कुछ दिनो बाद शायद सब ठीक हो जाता।”
“असल मे क्रिति जी मै जानता हूँ कि वो कोशिश कर रही थी मगर मै ये कभी नहीं चाहूँगा कि मेरी वजह से किसी को अपनी लाईफ़ मे समझौते करने पड़े। आखिर इन सबमे उसकी तो कोई गलती भी नहीँ। इसलिये मैने थोड़ा सा अजीब सा फ़ैसला लिया।मैने सोचा कि मै उसे डाईवोर्स देकर उसकी शादी जिससे वो चाहती थी उससे करवा दूँगा।मैने उसके घर वालों से बात कर ली,काफ़ी सम्झाने के बाद वो मान गये और मेरे घर पे मेरी माँ के सिवा और कोई नहीं है और मेरे हर फ़ैसले वो मे मेरा साथ देती है,तो उसे समझाना मेरे लिये काफ़ी असान था,एंड शी इज़ माई ओन्ली सपोर्टर।”
मुझे नहीं पता कि इतनी सी बातचीत के बाद क्रिति जी क्या सोच रही होंगी मगर उनके हावभाव थोड़े से बदल गये।शायद वो सोच रही होंगी कि मै झूठ बोल रहा हूं या वास्तविकता को छिपा कर अपनी वाहवाही के लिये कोई दूसरी ही कहानी सुना रहा हूं,और उनका ऐसा सोचना कुछ गलत भी नही है क्यूँकि मै जो कुछ भी कर रहा हूँ वो शायद थोड़ा पागलपन ही है।मगर जब कुछ समय के बाद उन्होने अपनी चुप्पी तोड़ी तो बात कुछ और ही लगी-

“मि तरुन पता नहीं आपको अन्दाज़ है या नही कि आपने कितना कठिन फ़ैसला किया है मगर आपने काम जरूर बहुत बड़ा किया है।”
“क्रिति जी ये आपका नज़रिया है मगर मेरी सोच मे परिवर्तन तब आया जब मैने गौर किया कि वो तकरीबन एक साल जो उसकी लड़की ने मेरे घर पर अपनी मर्यादाओं के लिये मेरे घर वालों की सेवा मे काट दिये उसे मै एक छोटी सी खुशी तो दे ही सकता हूँ। अब वो अपने घर पे जयपुर मे है,माँ भी वहीं रहती है और वो समय समय पे माँ का ख्याल लेती रहती है।इस वक़्त तो उसकी शादी की डेट भी फ़ाईनल हो चुकी है और ज़ाहिर सी बात है कि मै उसकी शादी मे खुशी से शरीक़ हूँगा।”
“मि तरुन क्या आपको नही लगता है कि एक साल बितने के बाद अब आपको कुछ खोया हुआ सा लगेगा?”
“कह सकते है क्रिति जी मगर वो मेरी बहुत अच्छी दोस्त बन गयी है इन एक सालो मे और शायद हमेशा रहेगी।”
इतने मे ही मि मल्होत्रा आ गये। हम दोनो ने तकरीबन 2 घंटो तक उनसे सलाह मश्वरा किया। और फ़िर 7 बजे के आस पास हमने उनसे इजाज़त ली।
बाहर के मौसम मे सर्दी पूरी तरह घुल चुकी थी,साँसों के साथ कुछ धुआं सा निकल रहा था।मेरा रास्ता जयपुर से होते हुए ही था और थोड़ा बाहरी इलाका होने की वजह से मैने क्रिती जी से पुछ ही लिया कि मै उन्हे घर तक छोड़ दूँ।उन्होने भी हामी भर दी।मैने पार्किंग से अपनी कार निकाली और जल्दी से हम दोनो ही गाड़ी मे बैठ गये।
हम दोनो ही शान्त थे।जैसे जैसे सफ़र कटता वैसे वैसे ज़िन्दगी भी बितती चली जाती,यूँ तो लोगो की ज़िन्दगी मे शाम कई बार आती है मगर कुछ की सुबह जल्दी हो जाती है और कुछ की शाम थोड़ी लम्बी खिच जाती है। पता नही हम दोनो अब इतने शान्त क्यु थे।इतने मे ही उनका घर आ गया।मैने गाड़ी रोकी।उन्होने गाड़ी का दरवाजा खोला और फ़िर अचानक क्यु रुक गयी।
“आपने मुझे कुछ गलत तो नही समझा?”
“नही कभी नही।” इस से ज़्यादे मै और कुछ नही कह पाया।
वो वापस जाने लगी,फ़िर न चाहते हुए भी मैने पीछे से आवाज़ दी।
“थैंक्यू। मुझे लगता था शायद मुझे कोइ सम्झेगा नही या शायद मै सही नही कर रहा हूँ।”
“नो नो। आपने कुछ गलत नही किया।”
इतना कह के वो भी वापस चली गयी और मै भी अपने रास्ते पे बढ़ गया।
कई बार हम सच्चाई समझ नही पाते और कई बार शायद जान बूझ के समझना नही चाहते।खैर मै नार्मल हो गया कुछ देर मे।मैने एक स्लो म्युज़िक चलाया और घर पहुँच गया।
मुझे घर पहोचने मे थोड़ा ज़्यादा ही वक़्त लग गया था।मैने थोड़ा अराम किया और मां ने तब तक खाना लगा दिया। मै खाना खा ही रहा था कि तब तक एक फोन आया।मैने फोन रिसिव किया,अवाज़ सुन के मै थोड़ा सा सोच मे पड़ गया।
ये क्रिति थी।
“तुम वक़्त पे पहुच गये? मैने सोचा रात ज़्यादे हो गयी है तो एक बार पूछ लू।”
“हाँ मै अराम से पहुंच गया।”
“रास्ते मे कोई प्राब्लम तो नही हुई मि तरुन?”
“नही! हल्का कोहरा था मै धीरे धीरे ही आया।”
इतने मे मुझे एक हल्की सी छीँक आ गयी।
“आपको शायद ठ्ड़ लग गयी है।कुछ ठंडा समान मत खाईयेगा। थोड़ा ध्यान रखा करिये। बाये”
उसने फोन रख दिया।मगर अब शायद उसकी अवाज़ मे एक अधिकार था या शायद अपनापन।मगर उसने मुझे खुश होने की वजह दे दी थी।इतने दिनो से कुछ कमी सी थी उसे शायद अब कोई पूरा कर सकता था।
ये कहानी यहाँ अब खत्म नहीं शायद अब शुरु होती है।

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